बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास का संक्षिप्त परिचय
संघर्ष, अस्थिरता और लोकतंत्र की तलाश:
बांग्लादेश का राजनीतिक इतिहास गहन संघर्ष, अस्थिरता, और लोकतांत्रिक आंदोलनों की कहानी है। 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से ही इस देश ने राजनीतिक अस्थिरता के कई दौर देखे हैं, जिनमें तख्ता पलट, सैन्य शासन, और लोकतांत्रिक संघर्ष शामिल हैं।
आइए, बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास पर एक नजर डालते हैं।
1971: बांग्लादेश का जन्म और शेख मुजीबुर रहमान का नेतृत्व
बांग्लादेश का राजनीतिक इतिहास 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता के साथ शुरू होता है। इस स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व शेख मुजीबुर रहमान ने किया, जिन्हें ‘बंगबंधु’ के नाम से भी जाना जाता है।
1971 के रक्तरंजित मुक्ति संग्राम के बाद, बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरा, और शेख मुजीबुर रहमान ने देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
शेख मुजीब ने बांग्लादेश के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन उनके शासनकाल में भी असंतोष की लहर उठने लगी। 1974 में आई भयंकर बाढ़ और उसके बाद के अकाल ने जनता में असंतोष को और बढ़ा दिया।
1975 में, शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की एक सैन्य तख्ता पलट में हत्या कर दी गई, जो बांग्लादेश के इतिहास का एक काला अध्याय है।
1975-1981: सैन्य शासन का दौर
शेख मुजीब की हत्या के बाद, बांग्लादेश में सैन्य शासन का दौर शुरू हुआ। जनरल जियाउर रहमान ने सत्ता संभाली और देश में आपातकाल लागू कर दिया।
उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की स्थापना की और 1977 में राष्ट्रपति बने। लेकिन 1981 में जियाउर रहमान की भी हत्या कर दी गई, जिससे देश में फिर से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन गया।
1982-1990: जनरल इरशाद का शासन
1982 में, जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद ने एक और तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया। इरशाद ने देश में मार्शल लॉ लागू किया और खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया। उनका शासनकाल भी विवादों और विरोध प्रदर्शनों से भरा रहा।
1990 में, देशव्यापी जन आंदोलन के बाद इरशाद को सत्ता छोड़नी पड़ी और बांग्लादेश में फिर से लोकतंत्र की बहाली हुई।
1991 से 2006: लोकतांत्रिक संघर्ष
1991 में, बांग्लादेश ने एक नए संविधान के तहत चुनाव कराए, जिसमें BNP की खालिदा जिया ने जीत हासिल की और प्रधानमंत्री बनीं। उनके बाद, 1996 में, शेख हसीना की आवामी लीग सत्ता में आई।
दोनों पार्टियों के बीच सत्ता का यह संघर्ष लगातार जारी रहा। इस दौरान, बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा, भ्रष्टाचार, और चुनावी धांधली के आरोप लगातार लगते रहे।
2006 में, जब खालिदा जिया की सरकार का कार्यकाल समाप्त हुआ, तो चुनावों को लेकर असहमति उत्पन्न हो गई। इसके परिणामस्वरूप, देश में आपातकाल लागू किया गया और एक सैन्य-समर्थित अंतरिम सरकार सत्ता में आई, जिसने 2008 में नए चुनाव कराए। इस चुनाव में शेख हसीना की आवामी लीग ने भारी बहुमत से जीत हासिल की।
2008 से वर्तमान: शेख हसीना का युग
2008 में सत्ता में आने के बाद, शेख हसीना ने बांग्लादेश की राजनीति पर अपना मजबूत नियंत्रण स्थापित किया। उनके शासनकाल में देश ने आर्थिक प्रगति की, लेकिन इस दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन, मीडिया पर नियंत्रण, और विपक्षी दलों के दमन के आरोप भी लगे।
शेख हसीना के खिलाफ विरोध और असंतोष के बावजूद, वह लगातार सत्ता में बनी रहीं।
ताजा तख्ता पलट: बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार
बांग्लादेश में हाल ही में हुए तख्ता पलट ने न केवल देश की राजनीतिक स्थिरता को झकझोर दिया है, बल्कि इसके साथ ही धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदू समुदाय, पर हो रहे अत्याचारों की घटनाओं को भी उजागर किया है।
इस रिपोर्ट में तख्ता पलट की घटनाओं के क्रम, इसके कारणों और प्रभावों के साथ-साथ हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों पर भी रोशनी डाली जा रही है।
घटनाओं का क्रम:
1. राजनीतिक असंतोष और विरोध प्रदर्शन
2024 की शुरुआत में शेख हसीना की सरकार के खिलाफ जनता में असंतोष चरम पर पहुंच गया था। विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों ने सरकार पर भ्रष्टाचार, चुनावी धांधली, और मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया।
इन आरोपों के बीच, बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें लाखों लोग सड़कों पर उतरे।
2. सेना का हस्तक्षेप और तख्ता पलट
विरोध प्रदर्शनों के बीच, सेना ने राजनीतिक स्थिति में हस्तक्षेप करना शुरू किया। सरकार और सेना के बीच बढ़ते तनाव के चलते जुलाई 2024 में सेना ने तख्ता पलट कर दिया। उन्होंने शेख हसीना को हिरासत में लेकर सत्ता अपने हाथ में ले ली और देश में आपातकाल लागू कर दिया।
3. हिंदू समुदाय पर अत्याचारों में वृद्धि
तख्ता पलट के बाद, देश में राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ धार्मिक असहिष्णुता में भी वृद्धि हुई। विशेष रूप से हिंदू समुदाय पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ गईं। मंदिरों पर हमले, हिंदू घरों में तोड़फोड़, और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगीं।
इस तख्ता पलट के दौरान हिंदू समुदाय को एक बार फिर से निशाना बनाया गया, जिससे उनके जीवन और संपत्ति को गंभीर नुकसान हुआ।
4. अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और मानवाधिकारों का हनन
तख्ता पलट और इसके बाद हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों की घटनाओं की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी निंदा हुई। अमेरिका, भारत, और यूरोपीय संघ ने बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली और धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की मांग की।
इसके बावजूद, देश में मानवाधिकारों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, और सेना द्वारा सख्त नियंत्रण के कारण मीडिया और विरोध की आवाजें दबाई जा रही हैं।
Bangladesh government: तख्ता पलट के कारण:
सरकार विरोधी असंतोष:
शेख हसीना की सरकार के खिलाफ जनता का असंतोष चरम पर था। भ्रष्टाचार, चुनावी धांधली और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों ने जनता में आक्रोश पैदा कर दिया था।
अर्थव्यवस्था और सामाजिक तनाव:
देश में बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक असमानता बढ़ रही थी। इसके साथ ही, धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा ने स्थिति को और जटिल बना दिया।
सेना का असंतोष:
सरकार और सेना के बीच लंबे समय से तनाव चल रहा था। सेना ने कई मुद्दों पर सरकार के फैसलों का विरोध किया, जिससे अंततः तख्ता पलट की स्थिति उत्पन्न हुई।
Bangladesh: तख्ता पलट और हिंदू अत्याचार के परिणाम:
राजनीतिक अस्थिरता:
तख्ता पलट ने बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता को खत्म कर दिया है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित हो गई है, और देश में एक बार फिर से सैन्य शासन की संभावना बढ़ गई है।
धार्मिक असहिष्णुता:
तख्ता पलट के बाद से हिंदू समुदाय पर हमले बढ़ गए हैं। मंदिरों पर हमले, धार्मिक स्थलों की अपवित्रता, और हिंदू परिवारों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं।
मानवाधिकारों का हनन:
देश में मानवाधिकारों की स्थिति गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। सरकार और सेना द्वारा मीडिया पर कड़ी सेंसरशिप लागू की जा रही है, और विरोध करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय दबाव:
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तख्ता पलट और हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों की कड़ी निंदा की है। इससे बांग्लादेश पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ गया है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था और संबंधों पर भी असर पड़ सकता है।
बांग्लादेश में नई सरकार का गठन: राजनीतिक अस्थिरता के बीच चुनौतियों और उम्मीदों का दौर
बांग्लादेश में हाल ही में हुए तख्ता पलट के बाद, देश में नई सरकार का गठन हो गया है। इस नई सरकार का गठन देश में लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा के माहौल के बीच हुआ है। नई सरकार के गठन के साथ ही देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की बहाली की उम्मीदें जागी हैं, लेकिन इसके सामने चुनौतियों का अंबार भी खड़ा है।
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