हिंदी कविता । Hindi Poem
उठ जाग मुसाफिर देर भई
प्रस्तुत हिंदी कविता” उठ जाग मुसाफिर देर भई ” ( Motivational Poem ) संग्रह का एक भाग है, जो की अपने जीवन के लक्ष्यों को पाने के लिए हमे प्रेरणा देता है। कविता के शब्द ” उठ जाग मुसाफिर देर भई” उसके लिए लिखे गए है जो अपने लक्ष्य को भूल गए है। कविता मे कवि ने उस साहस को उजागर करने की कोशिश की है, जिसे अक्सर लोग अपने जीवन मे लाने के लिए असफल हो जाते है।
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Uth jaag musafir der bhai !
कविता मे उस मन का भी जिक्र हुआ है जिसका संतुलन शायद हम जीवन मे कर नही पाते है। यही कारण है की हम अपने लक्ष्यों से दूर हो जाते है। यदि हम इन पंक्तियों के मध्यम से आपके जीवन मे एक सूक्ष्म परिवर्तन भी ला पाए तो कवि के लिखने का मकसद साकार होगा। हम आशा करते है की आप अपने भविष्य मे उन उचाईयो को छुए जिनकी आप ख्वाहिश रखते हो। अगर हमारी पंक्तियां पसंद आए तो आप अधिक से अधिक लोगो तक नीचे दिए गए शेयर बटन से मध्य से पहुंचा सकते है।
Motivational poem in Hindi
उठ जाग मुसाफिर देर भई – हिंदी कविता
उठ जाग मुसाफिर देर भई ,
सूरज ने आंखें खोली है ।
जीवन का लक्ष्य बहुत बड़ा है,
अब जिम्मेदारी लेनी है।
सरपट दौड़ अब रुक नही तू,
कल – कल के चक्कर मे तूने खेली आंख मिचौली हैं।
कल क्या होगा किसे पता है?
आज विचारों की होली है।
क्या तुझे पता है लक्ष्य तेरा वो?
जिसने बंद क्षमताएं खोली है।
मन को रोक बहुत चंचल है।
गलत डोर क्यू खोली है।
तू भटक गया जीवन के पथ से,
जीवन का चक्र समझ प्यारे,
क्यों सीमाएं खोली है?
उठ लक्ष्य तू निर्धारित कर अपना,
बढ़ उधर जिधर रोशनी पीली है।
सूरज का प्रकाश तू बन जा,
चंद्रमा की ठंडक ढीली है।
बहुत जी लिया गिर – गिर अब,
कदम बढ़ा और हाथ उठा,
बाहें क्यू पीछे ले ली है?
मिल जायेगा लक्ष्य तुझे अब,
चलता जा तू चलता जा यही जिंदगी जीनी है।
उठ जाग मुसाफिर देर भई ,
सूरज ने आंखें खोली है।
हिंदी कविता। Hindi Poem । Uth jaag musafir der bhai
✍️ भूपेंद्र चौहान